जब हर मोड़ पर दिखाए नए नज़ारें ये ज़िन्दगी,
जब हर किनारे पर नज़र आए कुछ और हसीं ये ज़मीन,
तो क्यों ना खो दे खुद को
कुछ पल ज़रा हम?
क्यों ना हो जाए गुम
इन नजारों में कुछ और हम?
ऐहसास करे वो खूबसूरती हम भी,
हो कर एक इस जहां से
महसूस करे उस खुदा को
इस ज़मीन, आसमान और इस हवा में
वो घुला है एक जादू-सा हो कर हर कतरें में,
वो छुपा है एक राज़-सा बनकर हर ज़र्रें में.
तो जब हर मोड़ पर दिखाए नए नज़ारें ये ज़िन्दगी,
क्यों ना समा ले इन नज़ारों को हम
हमारे दिल और ज़हन में?
क्यों ना शुक्रिया अदा करे हम उस उपरवाले का
इस जन्नत के लिए
यहाँ
इसी जहां में?
जब पाए यूही हम इन नज़ारों में खुदा को
तो हो जाए हम उसके और भी करीब
बस देखते रहे हम यूही
ये नज़ारें ज़िन्दगी के,,
We should be thankful for the beauty around us. Very refreshing poem.
ReplyDeleteThank you Saru. Glad you liked it :)
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