ये कश्ती निकल तो पड़ी हैं,
इस समन्दर की बाहों में.
ढूँढती हैं ये जवाब कई सवालों के
क्या हैं सहीं?
क्या गलत?
ना जाने क्या आए राहों में.
बस बेहते रेहना हर दम,
इस समंदर की बाहों में.
उठेंगी लेहरे,
उड़ेंगे परिंदे,
आज़ादी की ओर ये ले चलेंगे.
दुनिया नई मिलेंगी इन राहो में,
होंगी गलतियाँ भी कुछ इस कश्ती से.
पर जो भूल हैं हुई, उस्से सीख लेना
और बुलंद कर अपना हौसला,
बस बहते रेहना.
आएंगे तूफ़ान कई,
छाएंगे काले बादल,
है तमन्ना हो जाए दोस्ती उनसे,
और उनसे करीब की हो बातें.
फिर ही तो होगी तसल्ली इस दिल की,
इस समंदर की बाहों में!
Hey Dreaming Wanderer!
ReplyDeleteGood to see that you managed to get your blog back.
Happy blogging!
thanx sui..
ReplyDeletei did.. n i least expected to get it bak..
glad to b bak here too :)
"पर जो भूल हैं हुई, उस्से सीख लेना
ReplyDeleteऔर बुलंद कर अपना हौसला,
बस बहते रेहना!"
Very beautiful lines. Flow, learn, adapt and evolve; that's the gist of life. :)
:) THANKS SARU.. :)
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