क्या तुमने अपनी पीठ है थप - थपाई?
क्या घमंड से तुम्हारी छाती है फूल - फुलाई?
चला दिए जो डंडे और tear गैस स्टूडेंट्स पर तुमने!
कॉलेजों और घरों में घुस कर फैला दिया जो अपने डर का आतंक तुमने!
डरा धमकाकर इतनी जल्दी खुशिया ना मनाओ ज़ालिम
ये आग तुमने बुझाई नहीं बल्कि इससे पुरे देश में फैलाई है!
क्या सोचा था तुमने सब सेहम जायेंगे?
डर कर लोग क्या अपने घर वापस लौट जायेंगे?
इंसानियत को ललकारा है तुमने
संविधान पर अपना गन्दा हाथ डाला है तुमने!
अपने आपको चाणक्य समझने वाले
तुमने तो सोये हुए शेर को जगा दिया है!
मास्टरस्ट्रोक से देश को उल्लू बनाने वाले
तुमने तो सारे देश को एक जुट ला खड़ा कर दिया है!
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