तू धूप, तू छाव
तू ही मरहम जो भरता हर घाव
तू समंदर, तू किनारा
अपनी कश्ती का तू ही सहारा
अपनी मंज़िल तलाश्ता,
इस शेहेर से उस गांव
क्यू लगता है तुझे की तू है गुमशुदा?
तेरा तो हाथ थामे है खुद वो खुदा!
इस सफर में दर-दर किसे तू ढूंढ रहा?
अपना हमसफ़र तो तू खुद है, तुझे इतना भी नहीं पता?
तू ही मरहम जो भरता हर घाव
तू समंदर, तू किनारा
अपनी कश्ती का तू ही सहारा
इस शेहेर से उस गांव
क्यू लगता है तुझे की तू है गुमशुदा?
तेरा तो हाथ थामे है खुद वो खुदा!
इस सफर में दर-दर किसे तू ढूंढ रहा?
अपना हमसफ़र तो तू खुद है, तुझे इतना भी नहीं पता?